#Bhar_Bihar_darshan(भर_ट्राइब दर्शनीय)

 ✍✍यह है उराँव और भर राजाओं की धरोहर पटना और निंदौरगढ़। (25॰3’20’’ उत्तरी अक्षाश और 83॰22’5’’ पूर्वी देशांतर) यह बिहार के कैमूर जिले के चाँद प्रखंड में स्थित है और पटनवाँ-निन्दौर गढ़ के नाम से जाना जाता है। पटनागढ़ आदि काल से ही जनजातीय राजधानी रहा। 

             पटना पूर्व में कुड़ुखों (उराँवों) की राजधानी थी। द्रविड़ भाषा-भाषी ‘उराँव’, मूलतः कोंकण क्षेत्र के ‘किष्किंधा’ के निवासी थे। किष्किंधा, कृष्णा नदी की शाखा तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर अवस्थित था। उराँव रामायण में वर्णित ‘किष्किंधा’ की वानरी सेना, जिसके प्रमुख सुग्रीव थे, उनके वंशज हैं। लंका युद्ध में ये भगवान श्रीराम चंद्र की सेना की मुख्य भूमिका में थे। रावण विजय और लंका युद्ध की समाप्ति के पश्चात् वानरी सेना भी अपने परिवारों के संग अयोध्या (उत्तर भारत) को चली (वाल्मीकि रामायण; लंकाकांड; 124वाँ अध्याय)। इनमें से कुछ लोग तो अयोध्या तक पहुँचे लेकिन अधिकतर वानरी संख्या नर्मदा नदी के सहारे वर्तमान मध्य प्रदेश के क्षेत्रों और फिर सोन घाटी से कैमूर पहाड़ी के आस-पास स्थित ‘करुष’ प्रदेश पहुँच गयी। वे यहाँ कृषि कार्य करने लगे। ‘करुष’ प्रदेश में रहने के कारण ही ये अपने को ‘करख’ और बाद में ‘कुड़ुख’ कहने लगे। कुड़ुखों ने रोहतासगढ़ को खरवारों से हस्तगत कर लिया। फिर अपने शासन का केन्द्र पटनागढ़ को बनाया। 

           👉    कुड़ुख (उराँव) लोकगीतों में रोहतासगढ़ के साथ पटनागढ़ की चर्चा खूब मिलती है। यथा:- ‘रुइदास पटना में सिराजलेरे मैंना, नगापुरे अंडा पाराए पाराए।।’ या ‘रुइदास पटना से उड़ ले रे मैना: नगापुर अंडा पराय।’ लोक कवि कहता है कि मैना (उराँव जाति) तुम्हारा सृजन कहाँ हुआ और तुमने अंडा यानी अपनी संतान कहाँ पैदा किया? तुम्हारा रुइदास (रोहतासगढ़) और पटना (पटनागढ़) में सृजन हुआ, और नगापुर (छोटनागपुर) में अंडा दिया यानी तुम्हारी संतति का विस्तार हुआ।

            उराँवों के डंडा कट्टा और करम पूजा में भी सुमिरन करते समय रुइदास और पटना का नाम आता ही है, इनके साथ हरदी नगर का भी नाम लेकर पूर्वजों को ये याद करते हैं:- ‘हरदी नगर रुइदास पटना अरा ई यांता हूँ.........।’

            👉 इस प्रकार उराँव अपना आदि स्थान रोहतासगढ़ और पटना को मानते हैं। हरदी नगर भी इनका प्रमुख स्थान है। रोहतासगढ़ की ख्याति आदि काल से आज तक बनी हुई है। लेकिन हरदी नगर और पटनागढ़ 2013 तक अज्ञात थे। हमने अपनी पुस्तक ‘जनजातीय मुकुट रोहतासगढ़’ पर शोध करते समय इस पटनागढ़ को ज्ञात कर लिया था। उराँव गीतों में जिस रूप में पटनागढ़ की चर्चा है वे सभी दृश्य यहाँ मौजूद हैं। हालाँकि अभी हरदीनगर ज्ञात नहीं है, इसपर भी कार्य जारी है।  

               👉  भर जो चेरो जनजाति की ही एक शाखा थे, जब इस क्षेत्र में बलशाली हुए तो पटना और निंदौरगढ़ पर उनका अधिकार हो गया। इसके बाद उराँव इस क्षेत्र से पलायन को मजबूर हुए। हमने अपनी पुस्तक ‘रोहतास का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास’ पर शोध करते समय इन दोनों गढ़ों पर जानकारी इकट्ठा की थी। उसका विवरण यहाँ दे रहा हूँ। भर राजाओं से भट्टा के राजा और जौनपुर के सुल्तान हुसैन शर्की के सामंत रायभेद ने आक्रमण कर छीन लिया। जब सुल्तान सिकंदर को विश्वास हो गया कि रायभेद की भावनाएँ शर्की सुल्तान के पक्ष में हैं तो वह 1494 ई0 में रायभेद को दंड देने के लिये पटना की ओर प्रस्थान कर आक्रमण किया। रायभेद की मृत्यु हो गई और उसने पटना को जौनपुर शासन के अंतर्गत कर दिया। (निज़ामुद्दीन अहमद बक़्शी; तबक़ाते अकबरी; अनु0-सैयिद अतहर अब्बास रिज़वी; उत्तर तैमूर कालीन भारत; भाग-1; उपर्युक्त; पृष्ठ 213-214 तथा अब्दुल्लाह; तारीख़े दाउदी; अनुवादक अनु0-सैयिद अतहर अब्बास रिज़वी; उपर्युक्त; पृष्ठ 270.) मध्यकालीन लेखकों ने चौंद और पटना का समानार्थी रूप से प्रयोग किया है। पटना पहाड़ी के नजदीक है, जिसका उल्लेख ‘वाक़ेआते मुश्ताक़ी’ (शेख़ रिज़्कुल्लाह मुश्ताक़ी; वाक़ेआते मुश्ताक़ी, अनु0-सैयिद अतहर अब्बास रिज़वी; उत्तर तैमूर कालीन भारत; भाग-1; अलीगढ़; 1958; पृ0 189.) तथा ‘तारीख़े शाही’ (अहमद यादगार; तारीख़े शाही; उ0तै0का0भा0; भाग 1; उपर्युक्त; पृष्ठ 333.) में मिलता है। 

                 👉  पटनागढ़ से पश्चिम में लगभग 200 मीटर की दूरी पर निंदौरगढ़ है, जिसे बुकानन ने निंदू राजा का गढ़ कहा है। (Francis Buchanan; Shahabad; P.P.-148-149.) निंदौर का गढ़ पटना के गढ़ से बड़ा है। उसकी लंबाई उत्तर से दक्षिण 1080 फीट तथा चौड़ाई पूरब से पश्चिम 780 फीट है। पटनागढ़ की लंबाई इतनी ही थी लेकिन चौड़ाई कुछ कम थी। इन दोनों गढ़ों की ऊँचाई लगभग 40 से 50 फीट तक है। 

              👉   निंदौर गाँव में गढ़ से उत्तर पूरब में एक पीपल के वृक्ष के नीचे ढेर सारी हिन्दू और जैन प्रतिमाएं रखी गई हैं जो खंडित अवस्था में हैं। एक प्रतिमा जैन तीर्थंकर की है। भर जनजाति के राजा जैन धर्म को मानने वाले थे। अतः इस क्षेत्र में जैन धर्म की प्रतिमाएं मिलती हैं। बुद्ध की एक भी प्रतिमा मुझे नहीं मिली है।   

         👉    पटनागढ़ से उत्तर-पूरब में लगभग 150 मीटर की दूरी पर प्राचीन बड़ा पटना तालाब है। ये दोनों गढ़ अति प्राचीन हैं। यहाँ से ताम्र-कांस्य युगीन संस्कृति के लगभग 1900 ई0 पूर्व के मृद्भांड अवशेष हमें प्राप्त हुए। इनमें लाल, काले, लाल और काले, कृष्ण लेपित मृद्भांड यहाँ से प्राप्त होते हैं। बर्तनों में हाँड़ी, गगरी, नाद, थाली, लोटा आदि के अवशेष मिलते हैं। हमें यहाँ से एक कांस्ययुगीन मुर्गा गाड़ी भी प्राप्त हुई है। इस प्रकार ये दोनों गढ़ प्राचीन हैं लेकिन इनकी मिट्टी को काटा जा रहा है। अगर इन्हें बचाया नहीं गया तो ये दोनों विनष्ट होने के कगार पर हैं। इससे एक काल खंड का इतिहास मिट्टी में दबने को मजबूर है।।                                                      🙏🙏🙏🙏🙏🙏              

👉डा0 श्याम सुन्दर तिवारी 'बुचुन', कैमूरांचल और सोन घाटी संस्कृति के शोधकर्ता।

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