#Maharaja_Suheldev_Rajbhar(श्रावस्ती सम्राट महाराजा सुहेलदेव राजभर)

 

चक्रवर्ती महाराजा #सुहेलदेव_राजभर इतिहास

1001 ई0 से लेकर 1025 ई0 तक महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को लूटने की दृष्टि से 17 बार आक्रमण किया तथा मथुरा, थानेसर, कन्नौज व सोमनाथ के अति समृद्ध मंदिरों को लूटने में सफल रहा। सोमनाथ की लड़ाई में उसके साथ उसके भान्जा सैयद सालार मसूद गाजी ने भी भाग लिया था।

1030 ई. में महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने की जिम्मेवारी मसूद ने अपने कंधों पर ली लेकिन 10 जून 1034 ई0 को बहराइच की लड़ाई में वहां के शासक महाराजा सुहेलदेव के हाथों वह डेढ़ लाख जेहादी सेना के साथ मारा गया। इस्लामी सेना की इस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों की ऐसी धाक विश्व में व्याप्त हो गयी कि उसके बाद आने वाले लगभग 150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ।

ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी जिसका प्रारंभिक नाम भरवाइच था। इसी कारण इन्हें बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित किया जाता था। इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ माह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया। अवध गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है। ये नागवंशी भारशिव क्षत्रिय थे. •जिन्हें आज भर/राजभर कहा जाता है!

महाराजा #सुहेलदेव _राजभर का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तक फैला हुआ था गोंडा, बहराइच, लखनऊ, बाराबकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा के अंतर्गत समाहित थे। इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव के सहयोगी पासी (?) राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे – 1. रायसायब 2 रायरायब 3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6. मकरन 7. शंकर 8. करन 9 बीरबल 10 जयपाल 11. श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरवू 15. नरहर 16 मल्लर 17. जुधारी 18. नारायण 19, भल्ला 20 नरसिंह तथा 21. कल्याण |

ये सभी वीर राजा महाराजा #सुहेलदेव_राजभर के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सदैव आत्मबलिदान देने के लिए तत्पर रहते थे। इनके अतिरिक्त राजा #सुहेलदेव_राजभर के दो भाई बहरदेव व

मल्लदेव भी थे जो अपने भाई के ही समान वीर थे तथा पिता की भांति उनका सम्मान करते थे महमूद गजनवी की मृत्यु के पश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजी भारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्धने सालार मसूद के मनोबल को तोड़कर रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू सालार सैफुदीन, अमीर सैयद एजाजुद्दीन, मलिक दौलत मियों, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाह आदि एक बड़ी घुडसवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए।

पुनः भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया जिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व राय हरगोपाल ने अपने घोड़े दौड़ाकर मसूद पर गर्द से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोट आई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन उनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी।

मेरठ का राजा हरिदत्त सिंह राठौर मुसलमान हो गया तथा उसने मसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई। कन्नौज का शासक भी मसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना

बहराइच के ……..राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य के मूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के प्रथम रविवार को, जो वृहस्पतिवार के बाद पड़ता था, एक बड़ा मेला लगता था। यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येक रविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। बालार्क ऋषि व भगवान सूर्य के प्रताप से इस कुंड में स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच के नाम से जाना जाता था।

राष्ट्र रक्षक महाराजा #सुहेलदेव_राजभर

1001 ई0 से लेकर 1025 ई0 तक महमूद गजनवी ने भारतवर्ष को लूटने की दृष्टि से 17 बार आक्रमण किया तथा मथुरा, थानेसर, कन्नौज व सोमनाथ के अति समृद्ध मंदिरों को लूटने में सफल रहा। सोमनाथ की लड़ाई में उसके साथ उसके भान्ज सैयद सालार मसूद गाजी ने भी भाग लिया था।

1030 ई. में महमूद गजनवी की मृत्यु के बाद उत्तर भारत में इस्लाम का विस्तार करने की जिम्मेवारी मसूद ने अपने कंधों पर ली लेकिन 10 जून 1034 ई0 को बहराइच की लड़ाई में वहां के शासक महाराजा सुहेलदेव के हाथों वह डेढ़ लाख जेहादी सेना के साथ मारा गया। इस्लामी सेना की इस पराजय के बाद भारतीय शूरवीरों की ऐसी धाक विश्व में व्याप्त हो गयी कि उसके बाद आने वाले लगभग 150 वर्षों तक किसी भी आक्रमणकारी को भारतवर्ष पर आक्रमण करने का साहस ही नहीं हुआ।

ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार श्रावस्ती नरेश राजा प्रसेनजित ने बहराइच राज्य की स्थापना की थी जिसका प्रारंभिक नाम भरवाइच था। इसी कारण इन्हें बहराइच नरेश के नाम से भी संबोधित किया जाता था। इन्हीं महाराजा प्रसेनजित को माघ माह की बसंत पंचमी के दिन 990 ई. को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम सुहेलदेव रखा गया। अवध गजेटीयर के अनुसार इनका शासन काल 1027 ई. से 1077 तक स्वीकार किया गया है। ये नागवंशी भारशिव क्षत्रिय थे. •जिन्हें आज भर या राजभर कहा जाता है!

महाराजा सुहेलदेव का साम्राज्य पूर्व में गोरखपुर तथा पश्चिम में सीतापुर तक फैला हुआ था गोंडा, बहराइच, लखनऊ, बाराबकी, उन्नाव व लखीमपुर इस राज्य की सीमा के अंतर्गत समाहित थे। इन सभी जिलों में राजा सुहेल देव के सहयोगी पासी (?) राजा राज्य करते थे जिनकी संख्या 21 थी। ये थे – 1. रायसायब 2 रायरायब 3. अर्जुन 4. भग्गन 5. गंग 6. मकरन 7. शंकर 8. करन 9 बीरबल 10 जयपाल 11. श्रीपाल 12. हरपाल 13. हरकरन 14. हरवू 15. नरहर 16 मल्लर 17. जुधारी 18. नारायण 19, भल्ला 20 नरसिंह तथा 21. कल्याण |

ये सभी वीर राजा महाराजा सुहेल देव के आदेश पर धर्म एवं राष्ट्ररक्षा हेतु सदैव आत्मबलिदान देने के लिए तत्पर रहते थे। इनके अतिरिक्त राजा सुहेल देव के दो भाई बहरदेव व

मल्लदेव भी थे जो अपने भाई के ही समान वीर थे तथा पिता की भांति उनका सम्मान करते थे महमूद गजनवी की मृत्यु के पश्चात् पिता सैयद सालार साहू गाजी के साथ एक बड़ी जेहादी सेना लेकर सैयद सालार मसूद गाजी भारत की ओर बढ़ा। उसने दिल्ली पर आक्रमण किया। एक माह तक चले इस युद्धने सालार मसूद के मनोबल को तोड़कर रख दिया वह हारने ही वाला था कि गजनी से बख्तियार साहू सालार सैफुदीन, अमीर सैयद एजाजुद्दीन, मलिक दौलत मियों, रजव सालार और अमीर सैयद नसरूल्लाह आदि एक बड़ी घुडसवार सेना के साथ मसूद की सहायता को आ गए।

पुनः भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया जिसमें दोनों ही पक्षों के अनेक योद्धा हताहत हुए। इस लड़ाई के दौरान राय महीपाल व राय हरगोपाल ने अपने घोड़े दौड़ाकर मसूद पर गर्द से प्रहार किया जिससे उसकी आंख पर गंभीर चोट आई तथा उसके दो दाँत टूट गए। हालांकि ये दोनों ही वीर इस युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गए लेकिन उनकी वीरता व असीम साहस अद्वितीय थी।

मेरठ का राजा हरिदत्त मुसलमान हो गया तथा उसने मसूद से संधि कर ली यही स्थिति बुलंदशहर व बदायूं के शासकों की भी हुई। कन्नौज का शासक भी मसूद का साथी बन गया। अतः सालार मसूद ने कन्नौज को अपना केंद्र बनाकर हिंदुओं के तीर्थ स्थलों को नष्ट करने हेतु अपनी सेनाएं भेजना

बहराइच के ……..राजा भगवान सूर्य के उपासक थे। बहराइच में सूर्यकुंड पर स्थित भगवान सूर्य के मूर्ति की वे पूजा करते थे। उस स्थान पर प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के प्रथम रविवार को, जो वृहस्पतिवार के बाद पड़ता था, एक बड़ा मेला लगता था। यह मेला सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण तथा प्रत्येक रविवार को भी लगता था। वहां यह परंपरा काफी प्राचीन थी। बालार्क ऋषि व भगवान सूर्य के प्रताप से इस कुंड में स्नान करने वाले कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाया करते थे। बहराइच को पहले ब्रह्माइच के नाम से जाना जाता था।

लेखक:-डॉ. परशुराम गुप्त (प्रसिध्द इतिहासकार)




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