#The_Bhar_Tribe _act

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#The_Bhar_Tribe_act 


अब बात करते है #The_Bhar_Tribe_act की कहानी पर ।।


यह बात है 1860-1865 की जब अंग्रेजी हुकूमत ने अपने परचम पूरे भारतवर्ष पर लहरा दिया था और वहाँ की जमीन-जायदाद पर कब्जा जमा रहे थे । तब इनको कोई रोक रहा था तो केवल #भर_राजपूत(वर्तमान #राजभर_क्षत्रिय) इतना ही नही मित्रो इन अंग्रेजो का साथ कुछ जयचंदो ने दिया जो आज जमींदार बने बैठे है ।

लेकिन #भर_राजपूतो अपने मान-सम्मान व स्वाभिमान के साथ कोई समझौता नही किया । 

ब्रिटिश हुकूमत ये जान चूकी थी कि इनको(भर_राजपूतो) को अपने बस में करना लोहे का चना चबाने के बराबर है तो 

अंग्रेजी हुकूमत ने वर्ष 1871 में एक नया कानून बनाया  #क्रिमिनल_ट्राइब्स_एक्ट को लागू किया  इस कानून के दायरे में लगभग 500 जातियों व जनजातियो को लाया गया । ब्रिटिश हुकूमत के दौरान बहुत सारी ऐसी लड़ाकू जातियाँ थीं जिन्हें #क्रिमिनल_ट्राइब्स यानी #आपराधिक_जाति_जनजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था उसमें #भर_राजपूतो का नाम सर्वोपरि था ।

वस्तुतः इस अधिनियम के ज़रिये ब्रिटिश पुलिस को इन #भर_राजपूतो को गिरफ्तार करने, इनका शोषण करने और इनकी हत्या तक करने की असीमित शक्तियाँ दे दी गई थीं| इस से ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता कि किसी बच्चे को जन्म से ही #अपराधी मान लिया जाए क्योंकि सरकार का कोई बेहूदा कानून उसके परिवार को पहले से ही अपराधी मानता है। फिर भी #भर_राजपूतो ने संघर्ष जारी रखा ।।


आज यह आपराधिक #जाति तो नहीं कहलातीं है मगर आज इन्हें #विमुक्त_जाति के नाम से जाना जाता है।


चूँकि इनके साथ यह कलंक लगा हुआ है इसलिए समाज ने कभी भी इन्हें स्वीकार नहीं किया, ना समाज ने और ना ही सरकार ने अब ये जाये तो कहाँ जाये अतएव ये अपना निजि संसाधन एकत्र करके रहने लगे ।।


'प्रशासन का अत्याचार'


#विमुक्त का कलंक'


"विद्रोही किसी को पसंद नहीं आता. और यह #भर_राजपूत शुरू से ही विद्रोही थे, क्योंकि इन्होंने महाराणा प्रताप का साथ दिया मुग़लों के खिलाफ, बाद में यह अंग्रेजों का खजाना लूटने का काम करती थीं."


👉"जिन जनजातियों व जातियो  को अंग्रेजों ने आपराधिक घोषित किया था उन्हें 1952 में विमुक्त तो कर दिया गया मगर उनके नाम के आगे विमुक्त का शब्द जुड़ गया जिससे पता चले कि यह पहले अपराधी जाति के थे । मतलब अब तुम चोर नहीं हो, पहले चोर थे । यही नजरिया समाज का भी है और प्रशासन का."


👉भारत के विमुक्त जनजाति व जाति आयोग के अध्यक्ष #बालकृष्ण_सिद्धराम_रेंके मानते हैं कि इन जाति के प्रति लोगों की मानसिकता को बदलना ही सबसे अहम क़दम होगा ।


बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने जिन्हें सूचीबद्ध किया था उन्हें आजादी के बाद असूचीबद्ध कर दिया गया है.


वह कहते हैं, "सिर्फ इतना ही हुआ है. जबकि कानून की किताबों में आज भी इन्हें इसी रूप में देखा जाता है. प्रशासन के दिमाग में बैठा है कि यह लोग बुरे हैं। इन्हें समाज से अलग रखना चाहिए । इस मानसिकता को जब तक बदला नहीं जाएगा तब तक #भर_राजपूतो का कुछ भी भला नहीं हो सकता है ।


#पृष्ठभूमि 


1932 में एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल सर जॉर्ज मैक्मुन ने अपनी किताब ‘द अंडरवर्ल्ड ऑफ इंडिया’ में लिखा- “वे एकदम मैले-कुचैले, समाज की गन्दगी और किसी खेत में घास चर रहे पशुओं के समान हैं” । दरअसल, मैक्मुन अपनी किताब में जिन लोगों को संबोधित कर रहा था, ये वो लोग थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने कुख्यात #आपराधिक_जनजाति_अधिनियम1871 के ज़रिये ‘आपराधिक जनजाति’ घोषित कर दिया था|


1871 में बने इस अधिनियम में समय-समय पर संशोधन किये गए और धीरे-धीरे लगभग 150 से भी अधिक जनजातियों व जातियो को इसके तहत अपराधी घोषित कर दिया गया। पुलिस में भर्ती होने वाले जवानों को यह सिखाया जाने लगा कि ये जातियाँ पारंपरिक रूप से  #आपराधिक प्रकृति की रही हैं ।


इसका नतीजा यह हुआ कि इन जनजातियों के लोग देश में जहाँ कहीं भी रह रहे थे, उन्हें अपराधियों के तौर पर देखा जाने लगा और पुलिस को उनका शोषण करने की अपार शक्तियाँ दे दी गईं ।


साथ ही, देश भर में लगभग 50 ऐसी बस्तियाँ भी बनाई गईं जिनमें इन जनजातियों के परिवारों को बिल्कुल जेल की तरह से कैद कर दिया गया।  इन बस्तियों की चारदीवारी के बाहर पुलिस का पहरा रहने लगा और बस्ती के हर सदस्य को बाहर जाने और वापस लौटने पर पुलिस को सूचित करना पड़ता था ।


👉हालाँकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त इस विषय पर कई आयोगों एवं समितियों की स्थापना की गई, लेकिन इस सन्दर्भ में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है अयंगर समिति, जिसकी सिफारिशों के पश्चात 1952 में ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ को निरस्त कर दिया गया।


स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की समस्याएँ 


1952 के बाद #भर_राजपूत को अपराधी मानने वाला कानून तो बदल गया लेकिन समाज और व्यवस्था का नज़रिया आज भी इनके प्रति वैसा ही बना हुआ है ।

लगभग 180 सालों तक देश की व्यवस्था ने भर_राजपूतो

को कानूनी तौर पर जन्मजात अपराधी माना है। इसके चलते धीरे-धीरे अन्य समाज में भी इनकी पहचान अपराधियों के रूप में ही स्थापित होती चली गई ।


समाज में इन्हें आज भी कई तरह के भेदभाव झेलने पड़ रहे हैं, कई बार तो #भर_राजपूतो की पूरा का पूरा कस्बा इसलिये जला दी गईं क्योंकि कोई भी समाज इनको अपने गाँव या कस्बे के नज़दीक नहीं बसाना चाहता था ।


साल 2005 में तत्कालीन सरकार ने ‘विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों’ के लिये एक राष्ट्रीय आयोग (National Commission for Denotified, Nomadic and Semi-nomadic Tribes - NCDNT) का गठन किया था। इस आयोग के अध्यक्ष बालकृष्ण रेनके थे, 2008 में रेनके आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें इन जनजातियों के इतिहास से लेकर वर्तमान समय में इनकी चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गई थी ।


रेनके आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘दुर्भाग्य से ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ के समाप्त होने के बाद भी इनको उसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं ।अंग्रेज़ों द्वारा चलाई गई इस कुरीति के चलते आज भी समाज और पुलिस इन लोगों को शक और घृणा की ही नज़र से देखती है ।


रिपोर्ट में यह भी ज़िक्र है कि विमुक्त जनजाति के लोगों के मामले में न्याय के मूलभूत नियमों तक का उल्लंघन किया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘यह स्थापित सिद्धांत है कि जब तक कोई व्यक्ति दोषी साबित नहीं हो जाता उसे निर्दोष माना जाता है, साथ ही कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होता । लेकिन इनके मामलों में समाज और पुलिस, दोनों का नज़रिया ठीक उल्टा होता है ।


’इस रिपोर्ट में अभ्यासिक अपराधी अधिनियम (Habitual offenders act) की भी बात की गई थी जो कि उचित भी था| यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अयंगर समिति ने भी ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ 1871 को निरस्त करने की सिफारिश करते हुए कहा था कि अभ्यासिक अपराधी अधिनियम के दायरे में केवल कुछ चुनिन्दा जनजातियाँ ही नहीं, बल्कि सभी वर्गों के लोगों को शामिल किया जाना चाहिये। जहाँ रेनके आयोग की रिपोर्ट को 8 साल हो चुके हैं, वहीं अयंगर समिति की रिपोर्ट के 64 साल बाद भी  न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारों का इस ओर ध्यान गया है ।अतः सरकारों को चाहिये कि दोनों समितियों द्वारा सुझाई गई कुछ महत्त्वपूर्ण बातों पर गौर करें और उन्हें अमल में लाएँ ।


‘विमुक्त, घुमंतू और अर्ध-घुमंतू जनजातियों’ के लिये राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि 'आज़ादी के बाद तत्कालीन आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया, वहीं अछूतों और दलितों को अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया, और उसी आधार पर उन्हें विभिन्न सुविधाएँ प्रदान करके मुख्यधारा में शामिल करने के प्रयास भी किये गए हैं| लेकिन आपराधिक जनजाति अधिनियम’ से प्रभावित जनजातियो व #भर_राजपूतो की कोई खबर नहीं ली गई। अपवादस्वरूप अगर कुछ राज्यों को छोड़कर अन्य किसी भी राज्य सरकार ने इन्हें किसी भी सूची में शामिल नहीं किया, जो बहुत ही चिंताजनक है । 


#निष्कर्ष


यद्यपि 31 अगस्त 1952 को ब्रिटिशकालीन क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट समाप्त कर दिया गया और तबसे इन भूतपूर्व अपराधी समुदायों को सरकारी दस्तावेज़ों में विमुक्त मान लिया गया है किंतु खेदजनक तो यह है वर्तमान समय में तथाकथित सभ्य समाज के लोग इन समुदायों को जन्मजात अपराधी ही मानते हैं । इस पूर्वाग्रह पूर्ण नज़रिये के कारण ही इन समुदायों के उत्थान के लिए शासक वर्ग ने कोई कारगर उपाय नहीं किए ।


अनेक विमुक्त जातियों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा


2008 में भारत की संसद में एक एप्रोप्रियेशन बिल पास हुआ था जिसमें विमुक्त जातियों के हालात पर माननीय सांसदों ने कुछ तथ्यात्मक बातें रखी थीं ।ओडिशा के एक सांसद ब्रह्मानंद पांडा ने ज़िक्र किया था कि उनके निर्वाचन क्षेत्र का #भर_राजपूत समुदाय जो वास्तव में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, उन्हें आज भी समाज एवं शासन सत्ता पर बैठे लोग जन्मजात अपराधी ही मानते हैं।

 

इन समुदायों ने संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत और बराड़, बॉम्बे प्रेसीडेंसी एवं बंगाल प्रेसीडेंसी के अंतर्गत आने वाले सभी इलाकों में अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह किया था।

परिणामत: इन्हें इन सभी तत्कालीन प्रांतों में क्रिमिनल ट्राइब घोषित कर दिया गया था। इसी तरह मद्रास प्रेसीडेंसी के अनेक समुदायों ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध किया था।

इस बात के तमाम ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि 1857 के दौरान, तत्कालीन संयुक्त प्रांत, मध्य प्रांत और दिल्ली-मेरठ क्षेत्र में #लोधी,#गुज्जर #भर_राजपूत समुदाय ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध भीषण सशस्त्र विद्रोह किया था।

#copyright 

इसमें कुछ त्रुटि हो सकती है जो क्षमा योग्य है  ।

मेरा सवाल आप सभी से है 

👉क्या भर_राजपूत अछूत है?

👉क्या भर_राजपूत दलित है?

👉क्या भर_राजपूत शूद्र है?

👉क्या भर_राजपूत आज भी अपराधि की श्रेणी में है?

अगर नही तो क्यों? और है तो कैसे ??


मै आप सभी के जवाब की प्रतिक्षा करूंगा ।।


सभी मित्रो को जय श्री राम🙏

हर हर महादेव 🙏


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